तिब्बती लोगों ने तिब्बत की आजादी की वचनबद्धता दोहराई
धनबाद। तिब्बती रिफ्यूजी स्वेटर सेलर वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा न्यू स्टेशन ग्राउंड में तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के दीर्घायु एवं विश्व शांति के लिए 108 दीए जलाकर पूजा अर्चना की गई। इस अवसर पर एसोसिएशन के प्रधान लोदेन छेरिंग ने बताया कि आज ही के दिन 10 दिसंबर 1989 को दलाई लामा को नोबेल पुरस्कार दिया गया था दलाई लामा को विश्व शांति के लिए सबसे बड़ा पुरस्कार विश्व समुदाय के द्वारा तिब्बत के स्वतंत्रता संघर्ष को समर्थन के रूप में देखा जाता है।
10 दिसंबर तिब्बती स्वतंत्रता संघर्ष का महत्वपूर्ण दिन
विश्व भर में दो कारणों से 10 दिसंबर का दिन तिब्बतियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। एक यह कि 10 दिसंबर 1989 को को उनके अहिंसा के प्रति प्रतिबद्धता तथा तिब्बत समस्या के समाधान हेतु दूरगामी सुझावों के उपलक्ष्य में परम पावन दलाई लामा को नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया तब से लेकर संसार भर के तिब्बती लोग 10 दिसंबर को तिब्बत की खोई हुई स्वतंत्रता को प्राप्त करने हेतु तथा तिब्बती संघर्ष के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण दिन के रूप में मना रहे हैं। परम पावन दलाई लामा को नोबेल शांति पुरस्कार दिया जाना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तिब्बत के स्वतंत्रता संघर्ष को मान्यता देने का प्रतीक है तथा इस बात का संकेत भी है कि अंतरराष्ट्रीय समाज अहिंसा पर आधारित इस संघर्ष की सराहना करता है। तिब्बती लोगों के लिए 10 दिसंबर का महत्व इसलिए भी है कि यह दिन अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस है। चीन के अधिकार में तिब्बती लोगों के मूलभूत मानवाधिकारों पर पुन वापस दिलाना तिब्बती स्वतंत्रता संघर्ष का एक आधारभूत सिद्धांत है। 1949 में चीन के तिब्बत पर आक्रमण तथा 1959 में उस पर पूर्ण रूप से कब्जा कर लेने के उपरांत चीन द्वारा उन सभी मानव अधिकारों का तिब्बत में हनन हुआ है जो कि संयुक्त राष्ट्र की सार्वभौम मानवाधिकार घोषणापत्र में निहित है। तिब्बतियों के मानवाधिकार के हनन के अतिरिक्त चीन द्वारा तिब्बती लोगों की विशिष्ट संस्कृति तथा राष्ट्रीय पहचान को योजनाबद्ध तरीके से नष्ट करने हेतु नया अभियान शुरू किया गया है। विश्व भर को यह स्मरण कराने हेतु की चीन द्वारा तिब्बती लोगों के मानव अधिकारों का हनन किया गया है तथा यह क्रम अब भी जारी है। संसार भर में तिब्बती लोग इस महत्वपूर्ण दिन को मनाते हैं।

