सम्राट अशोक कल्याण क्रांति संघ के द्वारा राष्ट्रमाता सावित्री बाई फूले जयंती मनाई गई,बच्चों के बीच की गई पठन-पाठन सामग्री वितरण।


 सम्राट अशोक कल्याण क्रांति संघ के द्वारा राष्ट्रमाता सावित्री बाई फूले जयंती मनाई गई,बच्चों के बीच की गई पठन-पाठन सामग्री वितरण।

धनबाद : रविवार को सम्राट अशोक कल्याण क्रांति संघ के द्वारा भारत की पहली महिला शिक्षिका ज्ञान ज्योति राष्ट्रमाता सावित्री बाई फूले की जयंती मनाई गई।इस मौके पर संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय कुशवाहा के द्वारा बच्चों के बीच पठन-पाठन की सामग्री वितरण की गई। संजय कुशवाहा ने सावित्री बाई फूले के जीवणी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कुछ लोगों को सावित्री बाई फूले का नाम सुनते ही लगता हैं कि यह कोई नयी महान नारी हमारे बीच प्रचारित की जा रही हैं।मगर वास्तव में यह हैं कि सावित्री बाई फूले वह महान नारी हैं।जिन्होंने सभी प्रकार की जाति आधारित प्रताड़नाओं और प्रतिबंधों के बावजुद पराक्रम सिद्ध करने में सफल रहीं। 3 जनवरी 1831 (सोमवार) को महाराष्ट्र के सतारा जिले में नायगांव नामक छोटे से गांव में सावित्री बाई फूले का जन्म हुआ,पिता का नाम खण्डोजी नेवसे पाटिल और माता का नाम लक्ष्मी बाई था।सावित्री बाई बचपन से ही नटखट थी और खण्डोजी पाटिल के लिए बेटे से कम न थी सावित्री बाई। 1840 में मात्र 9 वर्ष के उम्र में सावित्री बाई का विवाह 13 वर्ष के जोतीबा से हुई। पति के प्रेरणा से सावित्री बाई ससुराल में ही पढ़ाई शुरू कर दी।जिसमें शिक्षक की भुमिका खुद जोतीबा ने निभाई।

सावित्री बाई और जोतीबा की कोई संतान नहीं था।अपनों की सताई गर्भवति विधवा ब्राहम्णी काशी बाई जिसे फूले दमपती ने आत्म हत्या करने से बचाया था। जिससे सुंदर बालक का जन्म हुआ,जिसका नाम यसवंत रखा गया। फूले दमपती ने कानूनी रूप से गोद लेकर अपने बच्चे की तरह पालपोसकर डाक्टर बनाया। उनदिनों शुद्र अछुत नारी की स्थिति बहुत भयंकर और अकथनीय पीड़ाओं से भरी थी। लिहाजा शुद्र अछुत नारी की उन्नति के लिए सावित्री बाई ने कन्या स्कूल खोले।सावित्री बाई पर गोबर और पत्थर की बौछार के साथ-साथ समाज की तीखे उलाहने सहते हुए प्रथम महिला अध्यापिका बनने का गौरव प्राप्त किया। शेरनी से हिम्मत रखने वाली सावित्री बाई पर रूढ़ीवादी लोग गोबर और किचड़ फेकते थे ताकि शिक्षा का प्रचार-प्रसार न कर सके। सावित्री बाई अपने साथ दो साड़ियां साथ लेकर चतती थी। आगे चलकर सावित्री बाई मुख्य अध्यापिका बनी और विरोध झेलते हुए 1 जनवरी 1848 को लड़कियों के लिए प्रथम स्कूल खोला गया। उस वक्त सावित्री बाई को फातिमा शेख का भरपुर सहयोग मिला। वहीं सावित्री बाई ने विधवा मुडन और शराब पर पाबंदी के लिए भी आंदोलन छेड़ा। जातीबा और सावित्री बाई ने नारी मुक्ति के लिए रूढ़ीवादियों का खंडन तो किया ही स्त्रियों के गुजर - बशर के लिए छोट - छोटे कुटिर उद्योग की व्यवस्था की और इस प्रकार सावित्री बाई फूले नारी मुक्ति आंदोलन की प्रथम महानायिका साबित हुई। महामारी के दौरान एक अछुत बालक बीमारी के कारण घर पड़ा-पड़ा तड़प रहा था उसे अपने कंधो पर उठाकर सावित्री बाई अस्पताल ले जा रही थी इसी सेवा कार्य के दौरान सावित्री बाई प्लेग के संक्रमण में आ गई और इसी बीमारी के कारण सावित्री बाई फूले की 1897 में मृत्यु हो गई। राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय कुशवाहा ने कहा कि इतने महान एवं कल्याणकारी कार्य करने के बाद भी सरकारों के द्वारा सावित्री बाई की महान कार्यों का कोई संज्ञान नहीं लिया जाता है। ज्ञान ज्योमि सावित्री बाई को भारत सरकार द्वारा भारत रत्न सम्मान से नवाजा जाना और उनकी जीवनी को सिलेबस में शामिल करने की मांग सम्राट अशोक कल्याण क्रांति संघ करती है। इस कार्यक्रम में सम्राट अशोक कल्याण क्रांति संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय कुशवाहा के साथ अशोक यादव,बिमलेश सिंह, रईस अंसारी, बृजन राम, विनय सैनी, मनीष वर्णवाल, रियासत हुसैन, सोनू मलिक, संतोष सोनकर के साथ कई अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।

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