खो न जाये ये कहीं तारे जमीन पर,



 


खो न जाये ये कहीं तारे जमीन पर

कोयला खदानों के बच्चों का भविष्य संवारने में जुटे देव कुमार वर्मा

धनबाद। पाठशाला' के संस्थापक कतरास के रहने वाले देव कुमार वर्मा   कोयला खदानों में काम करने वाले बच्चों को पढ़ाते हैं। वैसे बच्चे जिन्हें अपनी उम्र में पढ़ना और खेलना चाहिए,  गरीबी के कारण  अपना पेट भरने के लिए कोयले की अवैध तस्करी में लिप्त होना पड़ रहा है उनकी दुर्दशा ने उन्हें अंदर से झकझोर दिया और देव ने इन बच्चों को अपने लिए बेहतर जीवन बनाने में मदद करने के लिए 2014 में पाठशाला  की नींव रखी। उन्होंने बताया किया कि पाठशाला के मॉडल को झारखंड, बिहार और ओडिशा सहित पूरे भारत के राज्यों में दोहराया जा रहा है और इन राज्यों के विभिन्न शहरों में ऐसे 17 स्कूल चल रहे हैं।

दो कमरे से शुरुआत हुई पाठशाला की

कोयला मजदूरों के बच्चों की  दयनीय हालत देखकर देव ने उनका जीवन बदलने का निर्णय कर लिया। उन्हें फ्री में ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। यह काफी नहीं था, इसलिए उन्होंने पत्नी के साथ 2015 में दो कमरों का एक घर लेकर ‘पाठशाला’ नाम से पंजीयन करा लिया। पहले दरी पर बैठकर बच्चे पढ़ते थे, धीरे-धीरे फर्नीचर खरीदा।

 प्रोजेक्टर, एलसीडी, एक्वागार्ड के साथ पाठशाला में सुविधाएं बढ़ने लगीं। यह देखकर मित्रगणों के साथ अन्य लोग भी मदद करने आगे आए। किसी ने बाउंड्री वॉल बनवा दी तो किसी ने टॉयलेट। इस तरह पांचवीं तक का सर्व सुविधा वाला इंग्लिश मीडियम स्कूल शुरू हो गया।  यहां बच्चों को कॉपी-किताब, ड्रेस, पढ़ाई सब मुफ्त में मिलता है। 

शिक्षण कार्य में धर्मपत्नी का भरपूर सहयोग मिला

वे बताते हैं कि अभी पाठशाला में 300 बच्चे पढ़ रहे हैं। उनके लिए 19 शिक्षक हैं। उनका वेतन डेढ़ लाख रुपए है, उसमें से वे 60 हजार हर महीने टीचर्स को वेतन देने के लिए खर्च करते है।  पत्नी सरकारी कॉलेज में प्रोफेसर होने से उन्हें घर चलाने में कभी दिक्कत नहीं हुई जिससे वह अपना समय पाठशाला में ज्यादा ज्यादा दे पाते हैं। उनका कहना है कि पत्नी की मदद के बगैर यह सब नहीं हो पाता। नए सत्र के पाठशाला के लिए बहुत सारी कॉपी-किताबें चाहिए होती हैं। इसके लिए  दोस्त, उनके दोनों भाई, पत्नी और अन्य लोग मदद करते हैं। मिशन का पता चलने पर दानदाता भी मदद करते हैं। पाठशाला के दो टॉप बच्चे का सरस्वती विद्या मंदिर में दाखिला करवाया गया। उनकी वर्षभर की 30-30 हजार रुपए फीस भी सहयोगियों की मदद से  जमा कराई जाती है। उनके  काम की तारीफ मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री भी कर चुके हैं अपने अभियान में सरकारी मदद न मिलने कि टीस उन्हें सताती है उनका मानना है कि सरकार मदद करती तो और बेहतर हो सकता था।

कोयला अधिकारी है देव 

अपने बचपन के बारे में बात करते हुए, देव बताते हैं कि एक बच्चे के रूप में भी वह अपनी शिक्षा पूरी करने से पहले कोयला खदानों में काम करते थे और उसी कोयला क्षेत्र में अधिकारी बन गए। देव ने तब इन बच्चों को पीड़ित न होने देने और उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच प्रदान करने के मिशन पर कदम रखा। अपने सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में बात करते हुए, देव ने साझा किया कि बच्चों को स्कूल भेजना कोयला क्षेत्र में सिंडिकेट के साथ अच्छा नहीं रहा, जिन्होंने महसूस किया कि बच्चे अब फील्ड में काम नहीं करेंगे। देव के लिए माफियाओं और बच्चों के माता-पिता से उन्हें शिक्षा प्राप्त करने के लिए लड़ना एक कठिन परिदृश्य था। हालांकि, अपने हठ के साथ, वह कई बच्चों के जीवन को रोशन कर पाए है जो उनके स्कूल में पढ़ना जारी रखते हैं। उनका सफलता मंत्र जीवन में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए ईमानदारी और कड़ी मेहनत के साथ काम करना है। काम के अलावा, देव पाठशाला में अपना सारा अतिरिक्त समय बच्चों को नृत्य, गायन, एक्सटेम्पोर भाषण जैसी राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए पाठशाला में बिताते हैं ताकि उनके आत्मविश्वास को बढ़ावा मिले। वह कहते हैं कि पाठशाला न केवल शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करती है बल्कि बच्चों के समग्र विकास को भी ध्यान में रखती है। देव पाठशाला में एक समय का भोजन उपलब्ध कराकर उनके भोजन पर भी जोर देते हैं। महामारी के दौरान, देव ने भोजन भी परोसा और बच्चों के लिए दूध की व्यवस्था की।अब पाठशाला की कहानी और यात्रा अमेज़न और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध 'आसमान में सूरज' नाम से एक पुस्तक के रूप में उपलब्ध है।

Manoj Kumar

Digital Journalist.

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